Monika garg

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लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-27)#कहानीकार प्रतियोगिता के लिए

गतांक से आगे:-


ठीक रात के दूसरे पहर को मां बेटी दोनों मुंह पर लम्बा सा घूंघट डालकर उसी गुप्त मार्ग से चल पड़ी । चंद्रिका ने अपने साथ अपने हाथों से बनाई वो चित्रकारी भी ले ली जिस में वह और देव लाल हवेली के आगे खड़े हैं । चंद्रिका चित्रकारी ऐसी करती थी कि जिसकी भी तस्वीर बनाती थी वह उस कागज पर जीवंत हो उठता था।ऐसी ही अपनी ओर देवदत्त की ये तस्वीर बनाई थी जिसमे उन दोनों का रूप रंग बिल्कुल जीवंत हो उठा था। चंद्रिका इसलिए ये तस्वीर ले जा रही थी कि देवदत्त उसकी तस्वीर देखकर ही अपने मन को सहारा दे दिया करेगा इतने मिलने की कोई जुगत नहीं लगती।

कनक बाई आगे आगे मशाल लेकर चल रही थी तभी मशाल की रोशनी थोड़ी कम हो गयी । चंद्रिका ने आगे बढ़कर फूंकनी की सहायता से रौशनी तेज कर दी। तकरीबन बीस मिनट चलने के बाद वही बनावटी पहाड़ी के ऊपर खुलने वाला दरवाजा आ गया तभी कनक बाई बोली,

" बिटिया तुम जरा ठहरो एक बार मैं बाहर निकल कर देख लूं कोई बग़ीचे में घात लगाकर तो नहीं बैठा है।"

यह कहकर कनक बाई दरवाजे से बाहर चली गई और पहाड़ी के ऊपर से ही जायजा लेने लगी कि कोई उसे देख तो नहीं रहा है ना ।आज नाग पंचमी थी सभी अपने अपने कामों में व्यस्त थे उसने सुना था सुमंत्र भी किसी राजसी मेहमान की आवभगत में लगा था ।महल में जितने भी व्यक्ति थे छोटे बड़े ओहदे वाले  सब यही काम में लगे थे।


चंद्रिका दासी का भेस बना कर दासियों में ही सम्मिलित हो गई और कनक बाई अपने साजिंदों को  साथ लेकर राजा के रंग महल में चली गई ।वह जाते जाते चंद्रिका को होशियार कर गयी थी कि किसी की नजरों में मत आना बस अपना काम करना और अपने प्यार को लेकर इन प्यार के दुश्मनों से दूर चली जाना बिटिया हो सके तो आज ही।

कनक बाई ने उसके लिए एक पोटली में कुछ अशर्फियां और गहने रख दिए थे ।आगे घर गृहस्थी बसाने में काम आयेंगे।कनक बाई पीछे मुड़कर चंद्रिका को ऐसे देख रही थी जैसे उसी क्षण बेटी विदा कर रही हो । आंखें आंसूओं से भरी हुई थी कदम आगे बढ़ा रही थी पर वो पीछे खींचे चले जा रहे थे।


चंद्रिका पहले तो दासियों के साथ मिलकर महल के छोटे मोटे काम करती रही पर जब उसे लगा कोई उसे नहीं देख रहा है तो अपने आंचल में वो तस्वीर छुपाकर वो धीरे-धीरे देवदत्त के कक्ष की ओर बढ़ने लगी। उसने धीरे से दरवाज़े पर दस्तक दी। अन्दर से बड़ी ही धीमी आवाज आई "कौन"



लेकिन चंद्रिका बोल नहीं सकती थी इसलिए उसने फिर से दरवाजे पर दस्तक दी ।अब की बार अंदर से झुंझलाहट भरा स्वर और कदमों की आहट सुनाई दी "अरेरेरे….कौन है भयी मुझे नहीं जाना उत्सव….."जैसे ही दरवाजा खुला देवदत्त के शब्द मुंह में ही रह गये ।सामने चंद्रिका को दासी के भेष में देखकर देवदत्त की आंखों से झराझर आंसू बहने लगे और उसने दौड़कर चंद्रिका को गले से लगा लिया "आओहहह चंद्रिके ।तुम, कहां थी इतने दिन मैं तो पागल ही होने वाला था तुम को देखें बगैर ।तुम मेरी आंखों की शीतलता हो , मेरी कृतियों की प्रेरणा हो,ओह प्रिये मुझे छोड़कर मत जाना वरना अब की बार मेरा मरा मुंह ही देखोगी।"

चंद्रिका भी दौड़कर अपने प्रियतम से जा मिली जैसे कोई नदी मीलों का सफर तय करके अथाह समुद्र में जा मिले ऐसे।तभी चंद्रिका ने अपने आंचल में छुपाकर रखी हुई तस्वीर देवदत्त को दिखाई और उसे दीवार पर टांगते हुए बोली ,*अब जब भी मेरी याद आये तुम इस तस्वीर को देख लेना ।ये तुम्हें शीतलता प्रदान करेगी।"


"अब मुझे इस तस्वीर की कोई जरूरत नहीं है अब मैं अपनी चंद्रिका को कहीं जाने नहीं दूंगा ।ले जाऊंगा तुम्हें इन प्यार के दुश्मनों से दूर  । चंद्रिका! मैंने सोच लिया है कुंदनपुर से सौ कोस दूर मेरे मामा का घर है ।जब मैं इस राज्य में तुम्हारा नृत्य देखने आ रहा था तब एक रात मैं उनके पास रुका था । बड़ी ही अनुनय-विनय कर रहे थे कि तुम आते ही नहीं हो जिजजी के मरने के बाद क्या मामा का रिश्ता खत्म हो जाता है क्या ? नहीं बेटा अब की बार आओ तो दो चार महीने रहकर जाना।

उन का घर पहाड़ियों की तलहटी में बसा है ।जिसके चारों तरफ दुर्गम पहाड़ी है ।हम वहीं चलेंगे कोई हमें ढूंढ भी नहीं पायेगा।

"ओहहह देव तुम मेरे विषय में कितना सोचते हो । देखो मां भी यही कह रही थी कि बेटी तू अपने देव के साथ भाग जा ये देखो उसने बहुत से गहने और नकदी भी दिया है हमारी गृहस्थी के लिए पर….."


"पर क्या चंद्रिके?"


*मैं मां को ऐसे अकेले छोड़कर नहीं जा सकती क्योंकि मेरी मां का मेरे सिवाय इस दुनिया में कोई नहीं है ।ये मां का ही दिल हो सकता है जिसने अपनी परवाह किये बगैर मुझ से कह दिया कि जा बेटी भाग जा यहां से और अपनी गृहस्थी बसा ले पर मैं ऐसे नहीं जा सकती ।आज मां को राजा वीरभान ने गुप्त रूप से बुलाया है कुछ विशेष मेहमानों को मां की आवाज में ठुमरी सुननी है।वो मुरीद हैं मां की आवाज के ।जब मां गाकर फारिग हो जाएंगी तो हम मां को साथ लेकर चलेंगे । मां कह रही थी चौथे पहर तक वो फारिग हो जाएंगी।"


"हां हां बिल्कुल जैसी तुम्हारी मां वो मेरी भी मां है ।हम ऐसा करते हैं हम चौथे पहर तक इंतजार करेगें फिर हम यहां से कूच कर जाएंगे।"


चंद्रिका दौड़कर देव से लिपट गई।कहते हैं अगर औरत के सामने उसके परिवार को मां बाप को उसके पति या होने वाले पति द्वारा सम्मान दिया जाए तो औरत उस व्यक्ति के लिए कुछ भी कर जाएंगी।


यही हाल चंद्रिका का था जब देव ने उसकी मां को अपनी मां कहां तो चंद्रिका फूली नहीं समाई और देव के लिए नृत्य करने लगी ।

दोनों दो पहर तक प्यार के समुंदर में डुबकियां लगाते रहे पर उन्हें क्या पता था उनके साथ क्या होने वाला है।


कहानी अभी जारी है……………


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